पौड़ी गढ़वाल

सहभागिता से सॅंवरा तिमली गांव: सामूहिक प्रयासों से साकार हुई चेनलिंक फेंसिंग परियोजना,,,।

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द्वारीखाल/पौड़ी गढ़वाल *** उत्तराखंड के पर्वतीय जनपद पौड़ी गढ़वाल के विकासखंड द्वारीखाल के तिमली गांव में एक नयी मिसाल कायम हुई है, जहाँ सरकारी सहायता और ग्रामीण सहभागिता के समन्वय से खेती को सुरक्षित और समृद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

जिला योजना वर्ष 2024-25 के अंतर्गत घेरबाड़ कार्यक्रम में तिमली गांव में चेनलिंक फेंसिंग की स्थापना की गयी है, और इसकी सबसे बड़ी विशेषता है—ग्रामीणों की सक्रिय और प्रेरणादायक भागीदारी।

मुख्य कृषि अधिकारी ने बताया कि परियोजना के अंतर्गत कृषि विभाग द्वारा कृषकों को चेनलिंक फेंसिंग और एंगल आयरन पोल की आपूर्ति की गयी थी। साथ ही कुल 820 मीटर लंबी चेनलिंक फेंसिंग की स्थापना पर कृषि विभाग द्वारा जिला योजना से प्राप्त ₹4.76 लाख की राशि व्यय की गयी। लेकिन इससे अन्य आवश्यक कार्य जैसे गड्ढा खुदाई, पोल गाड़ना, फेसिंग लगाना आदि ग्रामवासियों ने खुद अपने संसाधनों और श्रम के माध्यम से किये। इससे परियोजना की कुल लागत में उल्लेखनीय कमी आयी और ग्रामीणों में स्वामित्व और आत्मनिर्भरता की भावना के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर कार्य निष्पादन की क्षमता भी मजबूती से दिखी है।

पर्माकल्चर योजना के तहत चयनित
तिमली गांव को पर्माकल्चर योजना के तहत चयनित किया गया है। यह योजना प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं स्थायी कृषि प्रणाली के विकास को बढ़ावा देने हेतु संचालित की जा रही है। गांव के समग्र विकास हेतु कृषि, ग्राम्य विकास, उद्यान विभाग सहित विभिन्न विभागों ने विकासात्मक गतिविधियों के माध्यम से इस क्षेत्र को एक समन्वित विकास मॉडल में बदलने का प्रयास किया है। फेंसिंग परियोजना इसका एक सफल उदाहरण बन कर सामने आयी है।

स्थानीय कृषकों के अनुसार, फेंसिंग के बाद पशु घुसपैठ पर रोक लगने से फसल की सुरक्षा में भारी सुधार हुआ है, वहीं फसल उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। इससे न केवल उत्पादन बढ़ा है, बल्कि कृषकों का मनोबल भी ऊंचा हुआ है।

मुख्य कृषि अधिकारी का कहना है कि “सहभागिता के आधार पर चेनलिंक फेंसिग की स्थापना का कार्य कराने से परियोजना लागत कम होने से अधिक क्षेत्रफल में कार्य कराने के साथ-साथ विवादों/शिकायतों से भी बचा जा सकता हैं। साथ ही इस प्रकार की सहभागिता आधारित परियोजनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती हैं और सतत विकास के लक्ष्य को साकार करने में सहायक होती हैं।”

एक आदर्श गांव की ओर कदम
तिमली गांव अब एक ऐसा उदाहरण बन चुका है जहाँ ग्रामवासियों ने मिलकर अपने गांव को एक आदर्श आत्मनिर्भर मॉडल के रूप में विकसित करने का बीड़ा उठाया है। यह पहल न केवल वर्तमान में लाभकारी है, बल्कि आने वाले समय में अन्य गांवों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनेगी।

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